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बहुत दूर कितना दूर होता है

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  वह लन्दन की गर्मी की एक शाम थी।  मैं दफ्तर से निकल रीजेन्ट्स पार्क की तरफ चल रही थी ।  मैं अक्सर शाम को  वहां जाती थी। अपने में खोयी सुर्ख लाल ढलते सूरज को निहारती चली जा रही थी।   लोग काम से घर जा रहे थे और कुछ घर से वाक के लिए निकले थे।  गर्मियों में अक्सर हिंदुस्तानी लोग यूरोप घूमने जाते हैं और लंदन तो वैसे ही आधा हिंदुस्तानी ही लगता है।  तो भारतीय मूल के लोग दिखना हैरान नहीं करता।  मैं पार्क में पहुंची ही थी की एक पेड़ के नीचे किसी को बैठे देखा, वह कुछ पढ़ रहा था।   यह पेड़ तो मेरा है !  मैं यहां हर शाम स्केचिंग करने बैठती हूँ,  आज यह कौन है ? और यह चेहरा इतना देखा भाला क्यों लग रहा है ?  मैं यह सोच ही रही थी की वो उठ के जाने लगा।  मुझे देख वो मुस्कुराया और आगे चलने लगा ।  मैंने पूछा, " बहुत दूर कितना दूर होता है ? "

Alwar-Sariska-Bhangarh

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सुबह के सात बजे हैं, पास रखी मेज़ पर फ़ोन बजता है, अलार्म नहीं है, दीदी का मैसेज है.  एक यूट्यूब लिंक.  नींद में अलसायी आंखें अचानक खुल गयीं.  दीदी को फ़ोन मिलाया, “कहाँ चलना है? जहाँ भी, बस चलो.  “सरिस्का, यहां से चार-साढ़े चार घंटे का सड़क का रास्ता  है”, दूसरी तरफ से जवाब आया.  “तो ठीक है बुकिंग करा ले.” बस फिर क्या था, चलिए मेरे साथ अलवर और सरिस्का कि सैर पर…  थोड़ा क्रेडिट IRCTC को भी दे देते हैं! अगली सुबह दिल्ली कैंट से करीब 9:15 पर गरीबरथ ट्रेन में टिकट बुक करा ली और 11:30 पहुँच गए अलवर शहर.  गुल्लू सोनी जी की टैक्सी सर्विस से दो दिन के लिए एक टैक्सी बुक करा ली और स्टेशन पर हमें मिले नवल जी हमारे गाइड और ड्राइवर. अरे ! यह बात बताना तो भूल ही गयी,  यह एक 5 खूबसूरत महिलाओं का ट्रिप था, जिसमें 60 से ऊपर भी और 30 साल से कम वाली भी.  दिल्ली के करीब बसा राजस्थान का शहर, अलवर.  अलवर, राजस्थान कि रेतीली धूल में सना, बड़े शहरों के किनारे का अतरंगी ढंग लिए अलसाया हुआ छोटा सा शहर.  स्टेशन से निकले और पहुँच गए सुबह के नाश्ते की कचौ...